दोस्तों, बजट 2021 में प्रोविडेंट फंड यानि PF में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा के कॉन्ट्रिब्यूशन की रकम से मिले ब्याज पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव किया गया है। इसने काफी उलझन सी पैदा कर दी है। मोटे तौर पर लगता है कि कर्मचारी प्रोविडेंट फंड (ईपीएफ), वॉलेंटरी प्रोविडेंट फंड (वीपीएफ) के साथ पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) में मिलाकर किए गए कॉन्ट्रिब्यूशन से मिले ब्याज पर टैक्स लागू होगा। लेकिन क्या सच में ऐसा है ? और अगर नहीं तो फिर क्या है इस नए नियम की ऍप्लिकेबिलिटी ? किन किन लोगो पर होगा इसका असर। ये सारी बाते आज हम डिसकस करेंगे। तो चलिए दोस्तों शुरू करते है :
दोस्तों , को लोगो को confusion हो रहा है की प्रोविडेंट फंड (ईपीएफ), वॉलेंटरी प्रोविडेंट फंड (वीपीएफ) के साथ पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) में मिलाकर किए गए कॉन्ट्रिब्यूशन से मिले ब्याज पर टैक्स लागू होगा। ऐसा नहीं है। ईपीएफ/वीपीएफ और पीपीएफ में निवेश की अलग-अलग लिमिट हैं। यानी 2.5 लाख रुपये की सीमा कैलकुलेट करने के लिए पीपीएफ और ईपीएफ/वीपीएफ के कॉन्ट्रिब्यूशन को मिलाकर नहीं देखा जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि आपको पीपीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन पर कमाए गए ब्याज पर अब भी टैक्स छूट मिलती रहेगी। इस छूट का ईपीएफ/वीपीएफ के कॉन्ट्रिब्यूशन से कोई लेना देना नहीं है।
दोस्तों, PF में कर्मचारी के योगदान/अंशदान पर आयकर कानून के सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये तक का टैक्स डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है। साथ ही इस पर मिलने वाला ब्याज और निकाला जाने वाला पैसा भी टैक्स फ्री है। लेकिन इसमें एक शर्त जुड़ी है। वह यह कि EPF से किया जाने वाला विदड्रॉल तभी टैक्स फ्री होगा, जब इंप्लॉई ने लगातार 5 साल नौकरी करने के बाद यह विथड्रावल की हो। अगर 5 साल की नौकरी पूरी होने से पहले ही कर्मचारी EPF अमाउंट निकालता है तो इस पर टैक्स देना होगा।
PF में अंशदान से होने वाली ब्याज आय आयकर कानून के सेक्शन 10 के क्लॉज (11) और क्लॉज (12) के तहत टैक्स फ्री है। वित्त मंत्री का कहना है कि इन क्लॉज में एक प्रावधान जोड़ा जाएगा, जिससे विभिन्न पीएफ में 2.5 लाख रुपये सालाना तक के कर्मचारी अंशदान से होने वाली ब्याज आय ही टैक्स फ्री होगी।
इस प्रस्ताव के अमल में आने के बाद पीएफ में 2.5 लाख रुपये सालाना तक के अंशदान से होने वाली ब्याज आय ही टैक्स फ्री होगी। इस लिमिट से अधिक के अंशदान पर ब्याज आय टैक्स के दायरे में आ जाएगी। इससे वे कर्मचारी सीधे तौर पर प्रभावित होंगे, जिनकी आय उच्च है और वे वॉलंटरी प्रोविडेंट फंड के जरिए मोटी टैक्स फ्री ब्याज आय प्राप्त कर लेते हैं।
उदाहरण के लिए अगर कोई साल में पीपीएफ में 1.5 लाख रुपये कॉन्ट्रिब्यूट करता है, वहीं ईपीएफ में 3 लाख रुपये का निवेश किया जाता है तो सिर्फ 50,000 रुपये (ईपीएफ में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा) के ब्याज पर टैक्स लगेगा। न कि 2 लाख के ब्याज पर जो इस मामले में पीपीएफ और ईपीएफ को मिलाकर 2.5 लाख रुपये की सीमा से ज्यादा है।
एक और उदाहरण से देखे तो कोई कर्मचारी ईपीएफ में 2 लाख रुपये और पीपीएफ में 1.5 लाख रुपये कॉन्ट्रिब्यूट करता है तो अब भी उसे टैक्स फ्री ब्याज आय का फायदा मिलेगा।
पीपीएफ में कॉन्ट्रिब्यूशन सेक्शन 10 (11) के तहत कवर है जो साल के दौरान 1.5 लाख रुपये से ज्यादा नहीं हो सकता है। इस तरह पीपीएफ बैलेंस पर जुटा ब्याज अब भी टैक्स फ्री रहेगा। कारण है कि साल के दौरान इसमें कॉन्ट्रिब्यूशन 2.5 लाख रुपये से ज्यादा नहीं होगा। इसके अलावा दोनों प्रोविडेंट फंड में कॉन्ट्रिब्यूशन को मिलाकर देखने के बजाय अलग-अलग देखने की जरूरत है।
वीपीएफ (VPF) और पीपीएफ (PPF) का एक बड़ा फायदा ये होता है कि इसे आप रिटायरमेंट के बाद भी 5-5 साल के ब्लॉक्स में आगे बढ़ा सकते हैं। इतना ही नहीं, इनमें से एक छोटा, बड़ा या पूरा हिस्सा निकालने की फ्लेक्सिबिलिटी भी है। वीपीएफ के मामले में अगर आप रिटायरमेंट के बाद 3 साल तक पैसे नहीं निकालते हैं तो वह अकाउंट इनऑपरेटिव हो जाता है। जो लोग वीपीएफ में बहुत सारा निवेश करते थे और अब टैक्स लगने के बाद चिंतित है।
लेकिन ज्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योकि अगर आप 1. 5 लाख रुपये से अधिक सालाना पैसों पर अधिक रिटर्न चाहते हैं तो अभी भी वीपीएफ आपके लिए फायदे का सौदा साबित होगा। जी हां, टैक्स लगने के बावजूद, वो भी 30 फीसदी वाले टैक्स ब्रैकेट में। अगर वीपीएफ में निवेश के बाद मिलने वाले रिटर्न पर 30 फीसदी टैक्स भी काट दें तो भी ये रिटर्न 5.85 फीसदी आता है, जो सिर्फ पीपीएफ से कम है। ये अभी भी बाकी फिक्स्ड इनकम विकल्पों से अधिक है।
तो दोस्तों तकनीकी तौर पर बजट प्रस्ताव ईपीएफ और पीपीएफ दोनों पर लागू होता है। हालांकि, यह दोनों पर स्वतंत्र रूप से प्रभावी होगा। बजट से लगता है कि नया प्रावधान सेक्शन 10 (11) (पीपीएफ से जुड़ा) और 10 (12) (ईपीएफ से जुड़ा) दोनों में आएगा। यह कॉन्ट्रिब्यूट की गई रकम के संदर्भ में लागू होगा। और दोनों का कंट्रीब्यूशन अलग अलग देखा जायगा न की दोनों का टोटल लिया जायेगा।
तो दोस्तों उम्मीद करते है की अब आपको बजट से हुआ confusion दूर हो गया होगा। और आप समझ गए होंगे की इन प्रोविशंस की पीपीएफ और ईपीएफ में जुटी रकम को एक साथ शामिल करने की मंशा नहीं है।
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