क्या आप अभी अभी कॉलेज से पढाई पूरी करके निकले है और जॉब ढूंढ रहे है या फिर हाल ही में आपने जॉब शुरू कर दी है । और आप अपनी ज़िन्दगी की पहली इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने जा रहे है। और इनकम टैक्स में कुछ भी आपको समझ ही नहीं आ रहा बल्कि आपका चार्टर्ड अकाउंटेंट या वकील तो कुछ ऐसे शब्द बोलकर चला गया जो आपने पहले कभी सुने ही नहीं। या अगर सुने है तो आपको उनका मतलब ही नहीं पता और इसी वजह से आप बहुत कंफ्यूज है। अगर ऐसा है तो आज का आर्टिकल सिर्फ आपके लिए है । आज हम इनकम टैक्स के बेसिक्स के बारे में बात करेंगे । बिलकुल बेसिक से शुरुआत करेंगे तो वो सब कवर करेंगे जो एक करदाता पर्सन को पता होना चाहिये। तो चलिए स्टार्ट करते है :
दोस्तों इनकम टैक्स के बेसिक्स के बारे में हम आज बताने जा रहे है तो ये आर्टिकल बहुत लम्बी होने वाली है तो चलिए सबसे पहले आपको बता देते है की आज हम क्या क्या कवर करेंगे इस आर्टिकल में :
- Income Tax जो हम पहले ही बता चुके है
- Direct Tax
- Indirect Tax
- Income tax return या ITR क्या होती है
- Zero ITR किसे कहते है
- Return bharne or tax pay करने में क्या डिफरेंस है?
- Assessee कौन होता है
- Financial year क्या होता है
- Assessment year क्या होता है
- Income tax Deduction क्या होता है
- Income tax फाइल करने की अंतिम तारीख कब है
- अगर समय से ITR फाइल नहीं किया तो क्या होगा ?
- Belated ITR क्या होती है
- Late filing penalty कितनी होती है
- Income tax की बेसिक लिमिट क्या है
- TDS या tax deducted at source क्या होता है
- Form 16 क्या होता है
- Form 26 AS क्या होता है
- CBDT क्या है
- Capital gain किसे कहते है
इन 20 पॉइंट्स को हम आज कवर करेंगे । चलिए सबसे पहले स्टार्ट करते है की क्या है इनकम टैक्स और क्यों देना होता है हमें इनकम टैक्स । अरे जब सैलरी हमारी है , मेहनत हम करते है , तो हम टैक्स क्यों दे ? ये हम सभी सोचते है । और जब सैलरी से टैक्स कटता है तो कही न कही हम सभी को थोड़ा दुःख तो होता ही है । है ना !
इनकम टैक्स यानी आयकर हमारी इनकम पर लगने वाला टैक्स है। हर साल हमें अपनी इनकम का एक फिक्स्ड शेयर केंद्र सरकार को देना पड़ता है। इनकम टैक्स (IT)अलग-अलग इनकम वाले लोगों पर अलग-अलग तरीके से लगाया जाता है।
इनकम टैक्स क्या है इसका साधारण सा मतलब है कि इनकम पर टैक्स । यानि जो भी आप पैसे कमाएंगे उस इनकम पर आपको इनकम टैक्स की स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स देना होगा।
दरअसल कोई भी सरकार अपने ज्यूरिस्डिक्शन में रहने वाले लोगों और आर्गेनाइजेशनस को जो नागरिक सेवा उपलब्ध कराती है, उन पर उसे काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। इसमें सड़क, बिजली-पानी से लेकर सुरक्षा और प्रशासन पर आने वाले खर्च शामिल हैं। किसानों और गरीब लोगों को विभिन्न सुविधा पर दी जाने वाली सब्सिडी या मदद आदि भी इन्ही खर्च में शामिल है। इन खर्चो के लिए सरकार के पास पैसा कहाँ से आता है तो इस खर्च को भारत सरकार दो तरह के कर लगाकर पूरा करने के प्रयास करती है। और वो है डायरेक्ट टैक्स और इनडायरेक्ट टैक्स ।
आइये अब जानते है की क्या है डायरेक्ट टैक्स और क्या है इनडायरेक्ट टैक्स :
भारत समेत पूरी दुनिया में सरकारी खर्च पूरा करने के लिए टैक्स दो तरीके से लिया जाता है। पहला लोगों की आमदनी में से कुछ हिस्सा लेना यानी डायरेक्ट टैक्स जिसे हम डायरेक्ट टैक्स भी कहते है । इनकम टैक्स (IT) या आयकर इसी कैटेगरी में आता है। टैक्स लगाने का दूसरा तरीका है गुड्स और सर्विसेज के उपयोग पर टैक्स लगाना जिसे इनडायरेक्ट टैक्स कहते है यानी अप्रत्यक्ष या परोक्ष कर। जैसे GST।
डायरेक्ट टैक्स या प्रत्यक्ष कर में सबसे बड़ा टैक्स इनकम टैक्स या आयकर है। हर साल के हिसाब से पहले से तय नियम के मुताबिक सरकार देश के उन सभी नागरिकों और संस्थाओं से इनकम टैक्स वसूल करती है, जिनकी इनकम टैक्स देने लायक होती है।
इनकम टैक्स पेय करने के लिए ही लोग इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर या ITR) फाइल करते हैं
आइये अब जानते है की इनकम टैक्स रिटर्न यानि ITR क्या होती है ?
आयकर रिटर्न वास्तव में आपकी इनकमऔर एक्सपेंसेस का लिखित हिसाब-किताब है। केंद्र सरकार को आप विस्तार में यह जानकारी देते हैं कि उस फाइनेंसियल ईयर में आपने अपनी नौकरी, बिज़नेस या प्रोफेशन से कितनी इनकम कमाई ।
इसके साथ ही इसमें आप सरकार द्वारा निर्धारित टैक्स सेविंग के विकल्प में इन्वेस्टमेंट
करने, जरूरी चीजों पर खर्च करने (री इम्बर्स्मेंट या बिल जमा करने पर टैक्स छूट के
बारे में) और एडवांस टैक्स अगर आपने पेय किया है तो उसकी जानकारी भी देते हैं।
E -फाइलिंग के ज़रिये आप अपनी आयकर रिटर्न (ITR) भर सकते है । आप अपना आयकर रिटर्न (ITR) खुद भी भर सकते हैं और किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट या इनकम टैक्स प्रैक्टिशनर की मदद से भर सकते हैं।
आइये अब जानते है की जीरो ITR किसे कहते है?
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के मौजूदा नियमों के हिसाब से अगर आपकी टैक्सेबल इनकम सालाना 2।5 लाख रुपये से कम है, तो आपके लिए आईटीआर (ITR) भरना जरूरी नहीं है। आप ऐसे में भी जीरो आईटीआर (ITR) भर सकते हैं। जीरो आईटीआर (ITR) का मतलब यह है कि आप सरकार को टैक्स तो नहीं चुकाते, लेकिन अपनी आमदनी और खर्च की जानकारी देते हैं।
आइये अब जानते है की रिटर्न भरने और टैक्स पेय करने में क्या अंतर होता है ?
आयकर रिटर्न (ITR) भरना और इनकम टैक्स जमा कराने में अंतर है। कोई व्यक्ति अगर टैक्सेबल इनकम के दायरे में नहीं आता, तब भी वह आयकर रिटर्न भर सकता है। नियमित रूप से आयकर रिटर्न भरने से वास्तव में आप अपनी इनकम का एक डाक्यूमेंट्री प्रूफ जमा कर लेते हैं जो किसी भी समय आपकी इनकम साबित करने में आपके काम आ सकता है। लोन लेने या इस तरह की किसी अन्य जरूरत के वक्त आयकर रिटर्न (ITR) आपकी आमदनी का सबसे रिलाएबल सोर्स माना जाता है। अगर आपकी आमदनी टैक्स के दायरे में नहीं आती तो आपके लिए आईटीआर (ITR) फाइल करना जरूरी नहीं है। अगर आप नियमित रूप से आयकर रिटर्न (ITR) भरते रहते हैं, तो इससे आपको कई फायदे मिलते हैं। तो इनकम टैक्स रिटर्न भरना और इनकम टैक्स पेय करना दोनों अलग अलग बात है । इनकम टैक्स पेय आप तभी करेंगे जब आप टैक्स पेय करने के लिए लायबल होंगे लेकिन इनकम टैक्स रिटर्न आप बिना टैक्स पेय किये भी भर सकते है ।
आइये अब जानते है की Assesse क्या होता है ?
Assessee का मतलब होता है करदाता यानि टैक्स पेयर जो कि टैक्स या किसी दूसरी राशि का इनकम टैक्स एक्ट के अनुसार सरकार को भुगतान करता है। सामान्य शब्दों में आप Assessee को टैक्स पेयर भी कह सकते है ।
आइये अब बात करते है फाइनेंसियल ईयर की :
फाइनेंसियल ईयर को प्रीवियस ईयर या टैक्स ईयर भी कहा जाता है । फाइनेंसियल ईयर वह ईयर होता है जिस में आप इनकम कमाते है। यह 1 अप्रैल को स्टार्ट होता है और 31 मार्च तक होता है। उदहारण के तौर पर – मान लो आपने कोई इनकम जुलाई 2019 में कमाई हो तो आपके लिए फाइनेंसियल ईयर 1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 होगा।
फाइनेंसियल ईयर तो क्लियर हो गया आइये अब जानते है की असेसमेंट ईयर क्या होता है:
इनकम टैक्स रिटर्न की फाइलिंग में अक्सर असेसमेंट ईयर का जिक्र आता है। असेसमेंट ईयर में आप रिटर्न फाइल करते हैं। पिछले फाइनेंसियल ईयर की कमाई का आकलन एसेसमेंट ईयर में किया जाता है। अगर आप फाइनेंसियल ईयर 2019-2020 के लिए आईटीआर फाइल कर रहे हैं तो आपका असेसमेंट ईयर 2020-21 होगा।
दोस्तों एक डिडक्शन शब्द भी बहुत सुनने को मिलता है इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते समय । आइये जानते है की इनकम टैक्स डिडक्शन्स क्या होती है ?
डिडक्शन आपकी ग्रॉस इनकम को कम कर देती है । ये वो अमाउंट होता है जो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट द्वारा आपको अल्लॉव किया जाता है आपकी इनकम में से माइनस करने के लिए जिससे आपकी टैक्स लायबिलिटी कम हो जाती है ।
आपकी ग्रॉस इनकम में से डिडक्शन माइनस करने पर ही आपकी टैक्सेबल इनकम आती है जिस पर आपको टैक्स पेय करना होता है । जितना आप इन डिडक्शन्स का लाभ ले पाएंगे आपका टैक्स उतना ही कम हो जायेगा । सबसे पॉपुलर डिडक्शन सेक्शन 80 c की डिडक्शन है जिसके अंदर आप 1।5 लाख तक की डिडक्शन क्लेम कर सकते है ।
आइये अब जानते है की इनकम टैक्स फाइल करने की अंतिम तारीख कब होती है ?
अलग अलग केटेगरी के टैक्स पेयरस के लिए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करने की लास्ट डेट अलग अलग होती है । दरअसल, जिनके खातों को ऑडिट करने की जरूरत नहीं है, उनके लिए फाइनेंसियल ईयर 2019-20 का आईटीआर फाइल करने की अंतिम तारीख 31 जुलाई, 2020 है।
और जिनके खातों को ऑडिट करने की जरूरत है उनके लिए आईटीआर फाइल करने की आखिरी तारीख 30 सितंबर है। इसमें ऐसे व्यक्ति या संस्थाएं ही आते हैं जिनके खातों को ऑडिट करने की जरूरत है (जैसे प्रॉपराइटरशिप, फर्म इत्यादि)
अब अगर आपने समय से ITR फाइल नहीं किया तो क्या होगा ?
किसी आम करदाता के लिए इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई 2020 है। अगर आप इस तारीख तक आईटीआर नहीं फाइल कर पाते हैं तब भी आपके पास रिटर्न फाइल करने का मौका होगा। इसे बिलेटेड ITR कहा जाता है। फाइनेंसियल ईयर 2019-20 के लिए बिलेटेड आईटीआर फाइल करने की लास्ट डेट 31 मार्च 2021 है। यह टाइम मिस हो जाने पर आप तब तक आईटीआर फाइल नहीं कर सकेंगे जब तक टैक्स डिपार्टमेंट से आपको नोटिस नहीं मिलता।
आइये अब जानते है की लेट फाइलिंग पेनल्टी कितनी होती है ?
इनकम टैक्स में 31 जुलाई के बाद आईटीआर फाइल करने पर आप पर लेट फाइलिंग फीस लगाया जायेगा। समयसीमा के बाद आईटीआर फाइल करने पर पेनाल्टी का एलान बजट 2017 में हुआ था। ये नियम असेसमेंट ईयर 2018-19 से लागू हो गए थे। इसमें 5000 या 10,000 रुपये की पेनल्टी शामिल है।
31 जुलाई के बाद लेकिन 31 दिसंबर से पहले ITR फाइल करने पर 5,000 रुपये की पेनल्टी
और 1 जनवरी और 31 मार्च के बीच 10,000 रुपये की पेनल्टी
अगर एक टैक्सपेयर के रूप में आपकी कुल इनकम 5 लाख रुपये से ज्यादा नहीं है तो आपके लिए मैक्सिमम लेट फीस 1,000 रुपये से ज्यादा नहीं होगी।
आइये अब जानते है की इनकम टैक्स की बेसिक लिमिट क्या है ?
अगर एक टैक्सपेयर के रूप में आपकी ग्रॉस टोटल इनकम बेसिक एक्जेम्प्शन लिमिट से ज्यादा नहीं है तो आपको लेट फाइलिंग फीस नहीं देना होगा। मौजूदा आयकर कानूनों के अनुसार, 60 साल से कम उम्र के करदाताओं के लिए बेसिक एक्जेम्प्शन लिमिट 2.5 लाख रुपये है। सीनियर सिटीजन के लिए यह तीन लाख और सुपर सीनियर सिटीजन के लिए पांच लाख रुपये है। इस बेसिक एक्सेम्पट लीमिट से ज्यादा अगर आपको टैक्सेबल इनकम है तो आपको टैक्स देना होगा ।
आइये दोस्तों अब बात करते है TDS की । TDS शब्द तो आपने कही न कही सुना ही होगा । क्या आप जानते है की TDS क्या होता है ?
टीडीएस शुरू करने का मकसद था इनकम सोर्स पर ही टैक्स काट लेना। अगर किसी व्यक्ति को कोई इनकम होती है तो उस इनकम से टैक्स काटकर अगर व्यक्ति को बाकी रकम दी जाये तो टैक्स के रूप में काटी गई रकम को टीडीएस कहते हैं।
जो व्यक्ति पेमेंट कर रहा है वह टीडीएस (TDS) भरने के लिए ज़िम्मेदार होता है और इन्हें डिडक्टर कहा जाता है। वहीं दूसरी ओर जो व्यक्ति टैक्स काट के पेमेंट प्राप्त करता है उन्हें डिडक्टी कहा जाता है। डिडक्टी अपने चुकाए गए टैक्स का टीडीएस (TDS) क्लेम कर सकता है। हालांकि उसे उसी फाइनेंसियल ईयर में क्लेम करना पडेगा।
टीडीएस (TDS) हर इनकम पर और हर किसी लेन-देन पर लागू नहीं होता है। आयकर विभाग की ओर से कई तरह के अलग-अलग पेमेंट्स पर अलग-अलग रेट्स सुझाव गए हैं।
आइये अब जानते है की फॉर्म 16 क्या होता है ?
फॉर्म 16 एक सर्टिफिकेट है। इसे कंपनियां अपने कर्मचारियो को इशू करती हैं। यह कर्मचारी की सैलरी से काटे गए TDS (स्रोत पर कर कटौती) को सर्टिफाई करता है। इससे यह भी पता चलता है कि कंपनी ने टीडीएस काटकर सरकार को जमा कर दिया है।
इस फॉर्म के दो हिस्से होते हैं। पार्ट ए और पार्ट बी। पार्ट ए में कंपनी का TAN, उसका और कर्मचारी का पैन, पता, एसेसमेंट ईयर, एम्प्लॉयमेंट अवधि और सरकार को जमा किए गए टीडीएस का शार्ट डिस्क्रिप्शन होता है।
फॉर्म 16 के पार्ट बी में सैलरी का ब्रेक-अप, क्लेम किए गए डिडक्शन, कुल टैक्स योग्य इनकम और सैलरी से काटे गए टैक्स का ब्योरा शामिल होता है।
कंपनी या आर्गेनाइजेशन को 31 मई से पहले फॉर्म 16 जारी करना पड़ता है। इसके अलावा साल के बीच में अगर नौकरी बदलती है तो भी कंपनी को फॉर्म 16 जारी करना पड़ता है।
फॉर्म 16 आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करने में मदद करता है। इसका इस्तेमाल इनकम के सबूत की तरह होता है। लोन के अस्सेस्मेंट और इसे मंजूर करने में इसकी कॉपी साथ में लगाई जाती है।
आइये अब जानते है की फॉर्म 26 AS क्या होता है ?
फॉर्म 26 AS टैक्सपेयर के लिए एनुअल कंसोलिडेटेड स्टेटमेंट की तरह काम करता है । आपने कितना टैक्स पेय किया है या कितना टैक्स आपका डेडक्ट किया गया है यानि कितना tds कटा गया है ये सारी डिटेलस इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास होती है और इन सब डिटेलस को आप अपने PAN नंबर को इस्तेमाल करके इनकम टैक्स की वेबसइट से निकल सकते है और इस डिटेल को फॉर्म 26 AS कहते है । जब भी आपको अपनी ITR भरनी होती है आपको फॉर्म 26 AS की ज़रूरत पड़ती है। इसे आप किसी भी टैक्स पेयर का टैक्स क्रेडिट स्टेटमेंट भी कह सकते हैं।
आइये अब जानते है की सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज यानि CBDT क्या है ?
The Central Board of Direct Taxes एक statutory अथॉरिटी है जो सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ रेवेनुए एक्ट, 1963 के अंदर फंक्शन करती है और इसका काम होता है डायरेक्ट टैक्सेज के मुद्दों से डील करना जैसे की डायरेक्ट टैक्स का कलेक्शन । तो CBDT एक statutory अथॉरिटी है जो डायरेक्ट टैक्सेज के मैटर्स को हैंडल करती है ।
आइये अब अंत में जानते है की कैपिटल गेन किसे कहते है ?
जब कोई निवेशक अपने ओन्ड शेयर, बांड्स या कोई अन्य कैपिटल एसेट बेचता है और इससे जो प्रॉफिट होता है उसे कैप्टिल गेन कहते है। प्रॉफिट यानी एक हजार रुपये के शेयर को अगर 1250 रुपये में बेचा गया हो तो 250 रुपये को कैप्टिल गेन कहेंगे। अगर सेल्लिंग प्राइस बाइंग प्राइस से कम हो तो उसे कैप्टिल लॉस कहते है।
तो दोस्तों ये हमने आज विस्तार में डिसकस किये इनकम टैक्स के कुछ बेसिक्स। कहने को तो ये सब बेसिक्स है लेकिन बहुत बार ये बेसिक्स कॉमर्स पढ़ने वाले बच्चो को भी क्लियर नहीं होते ।
उम्मीद करते है की आपको ये सारे इनकम टैक्स के बेसिक्स कांसेप्ट वाइज क्लीर हो गए होंगे । तो दोस्तों हमारे इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिये और आपको कैसा लगा ये हमें नीचे कमंट करके ज़रूर बताइये। धन्यवाद्!