म्यूच्यूअल फंड स्कीम में इन्वेस्ट करने से पहले समझ लें म्यूच्यूअल फण्ड से जुड़े सभी रिस्क

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दोस्तों हम बचपन से ही अपने पेरेंट्स को फिक्स्ड डिपाजिट में निवेश करते हुए देखते आ रहे है।  लेकिन आज के समय में फिक्स्ड डिपाजिट में गिरते इंटरेस्ट रेट की वजह से इसने क्रेज इतना ज्यादा नहीं रहा।  आज के समय में निवेश के इंस्ट्रूमेंट में म्यूच्यूअल फण्ड काफी फेमस है। आपने ये तो ज़रूर सुना होगा की : ‘म्यूच्यूअल फंड्स, मार्केट रिस्क्स के अधीन होते हैं,’ लेकिन क्या आप इन मार्केट रिस्क्स से वाकिफ हैं जो आपके इन्वेस्टमेंट्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं? परिणामस्वरूप आपके फाइनैंशल लक्ष्यों को भी? क्या आपको पता है कि किस कैटिगरी का म्यूच्यूअल फंड, आपकी रिस्क प्रोफाइल के लिए सबसे सूटेबल है?

किसी भी निवेश में दो चीजें सबसे ज्यादा मायने रखती हैं – रिस्क और रिटर्न। कहा जाता है कि जितना निवेश में रिस्क होगा उतना ही रिटर्न मिलेगा।  हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है कि हाई रिस्क प्रोडक्ट में निवेश किया है तो आपको गारंटीड ज्यादा रिटर्न मिलेगा।  कभी-कभी हाई रिस्क निवेश में आपको हाई लॉस भी हो सकता है।

आज हम बात जानेगे म्यूच्यूअल फंड से जुड़े हुए रिस्क के बारे में।  तो चलिए शुरू करते है।

दोस्तों म्यूचुअल फंड में निवेश करना जोखिम भरा हो सकता है।  अपनी उम्र, आर्थिक स्थिति और भविष्य मे कितनी ग्रोथ चाहते हैं ये सब ध्यान में रखकर ही अपनी रिस्क उठाने की क्षमता तय करें।  ज्यादा रिस्क झेलने वाले व्यक्ति इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं वहीं जो लोग ज्यादा रिस्क नहीं चाहते वह बैलेंस्ड फंड जिसमे डेट और इक्विटी दोनों शामिल होते हैं उसमें निवेश करते हैं।

हर म्यूच्यूअल फंड कैटिगरी में अलग-अलग तरह का रिस्क होता है। उदाहरण के लिए, डेट फंड्स से जुड़े रिस्क, इक्विटी फंड्स से जुड़े रिस्क से अलग होते हैं। इसके अलावा एक ही म्यूच्यूअल फंड कैटिगरी में अलग-अलग प्रकार की स्कीम्स में अलग-अलग प्रकार के रिस्क हो सकते हैं।

म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करने से पहले आपको इसमें जुड़े रिस्क के बारे में पता होना चहिये।  सबसे पहले आता है –

मार्किट रिस्क – मार्केट रिस्क उस रिस्क को कहते हैं जो किसी इन्वेस्टर को होता है मार्केट की खराब परफॉर्मेंस की वजह से।  बहुत सारे फैक्टर होते हैं जो मार्केट की परफॉर्मेंस को अफेक्ट करते हैं। उदाहरण के लिए इन्फ्लेशन, नेचुरल डिजास्टर, रिसेशन, पोलिटिकल अनरेस्ट, फ्लकचुएशन ऑफ इंटरेस्ट रेट्स इत्यादि। मार्केट रिस्क को सिस्टमैटिक रिस्क भी कहते हैं।  अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करके भी इस रिस्क से नहीं बचा जा सकता।  मार्केट रिस्क के समय इन्वेस्टर सिर्फ और सिर्फ हालात के सही होने का इंतजार कर सकता है।

कंसंट्रेशन रिस्क

 कंसंट्रेशन का मतलब होता है किसी एक चीज पर फोकस करना। इन्वेस्टमेंट करते समय पर अपना सारा पैसा किसी एक स्कीम पर कंसंट्रेट कर देना कभी भी एक अच्छा ऑप्शन नहीं होता। ऐसा करने से अगर आप किस्मत वाले हुए तो आपको प्रॉफिट बहुत ज्यादा हो सकता है लेकिन लॉसेस होने के भी इतने ही ज्यादा चांसेस होते हैं। कंसंट्रेशन रिस्क को कम करने के लिए आप अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई कर सकते हैं। एक ही सेक्टर में कंसंट्रेटिंग और इन्वेस्टिंग में बहुत रिस्की होता है।  आप अपने पोर्टफोलियो को जितना डायवर्स करेंगे आपका उतना ही रिस्क कम होगा।

इंटरेस्ट रेट रिस्क

इंटरेस्ट रेट रिस्क जुड़ा होता है इंटरेस्ट रेट चेंज से। इंटरेस्ट रेट चेंज डिपेंड करते हैं कि मार्केट में कितना क्रेडिट अवेलेबल है और कितनी डिमांड है।  यह दोनों एक दूसरे से जुड़े होते है।  अगर आपके इन्वेस्टमेंट पीरियड के दौरान इंटरेस्ट रेट बढ़ता है तो इससे आपकी सिक्योरिटीज के प्राइस में रिडक्शन होगी।  उदाहरण के लिए एक व्यक्ति तय करता है कि वह अपने ₹100 रूपये 5 परसेंट के इंटरेस्ट रेट के हिसाब से कुछ सालों के लिए इन्वेस्ट करेगा। अगर किसी कारणवश इंटरेस्ट रेट चेंज होता है और 5 परसेंट की बजाय 6 परसेंट हो जाता है तो उसके निवेश किये गए ₹100 तो उसे तुरंत वापस नहीं मिलेंगे क्योंकि उसका जो रेट है वह फिक्स है।  यहां पर सिर्फ एक ही ऑप्शन है उसके पास और वह है उसकी बांड की मार्केट वैल्यू को बेचने का। वही अगर इंटरेस्ट रेट कम होकर 4 परसेंट हो जाता है तो आप अपने ज्यादा इंटरेस्ट रेट वाली इन्वेस्टमेंट को ज्यादा प्राइस पर बेच सकते है।

क्रेडिट रिस्क

 क्रेडिट रिस्क वह रिस्क होता है जब किसी स्कीम का इस्सुएर उस स्कीम में प्रॉमिस किए गए इंटरेस्ट को पे ना कर पाए।  दोस्तों जनरली एजेंसीज जो इन्वेस्टमेंट्स को हैंडल करती हैं उनका एक रेटिंग क्राइटेरिया होता है।  तो जब भी कोई इन्वेस्टर निवेश करें तो वह रेटिंग जरूर चेक करें और हाई रेटिंग वाली फर्म्स के साथ ही निवेश करें।   किसी भी डेट फंड में इन्वेस्ट करने से पहले आपको क्रेडिट रेटिंग जरूर देखना चाहिए।  एएए सबसे हाई रेटिंग होती है और c  सबसे लो क्रेडिट होती है। जब भी आप निवेश करें क्रेडिट रेटिंग को ध्यान में रखकर निवेश करें।

लिक्विडिटी रिस्क

लिक्विडिटी रिस्क का मतलब है इन्वेस्टर अपनी एसेट्स को डिजायर्ड प्राइस पर लिक्विडेट ना कर पाए।  दोस्तों लिक्विडिटी रिस्क होता है डिमांड और सप्लाई की कंडीशन की वजह से , इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी की वजह से , क्रेडिट रेटिंग चेंज  होने की वजह से। लिक्विडिटी रिस्क को काम करने का सबसे अच्छा तरीका है की आप अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करे और अपने निवेश करने के लिए फण्ड को बहुत ही ध्यान से चुने।

दोस्तों स्मॉल-कैप इक्विटी फंड्स में, लॉन्ग-टर्म इक्विटी फंड से ज्यादा मार्केट रिस्क होता है। इंटरेस्ट रेट रिस्क, क्रेडिट रिस्क, लिक्विडिटी रिस्क, मुद्रास्फीति रिस्क, कीमत उतार-चढ़ाव रिस्क, एकाग्रता रिस्क, इत्यादि म्यूच्यूअल फंड्स इन्वेस्टमेंट से जुड़े कुछ आम रिस्क हैं।आप रिस्क को ख़त्म नहीं कर सकते, लेकिन सही स्ट्रैटिजी अपनाने और म्यूच्यूअल फंड्स का स्मार्ट चुनाव करने पर, रिस्क को काफी हद तक कम करने में मदद मिल सकती है।

तो दोस्तों ये हमने आज आपको बताया म्यूच्यूअल फण्ड से जुड़े हुए रिस्क के बारे में। दोस्तों उम्मीद करते है की आपको हमारी आज का आर्टिकल अच्छा लगा होगा।  तो इसे अपने दोस्तों के साथ ज़रूर शेयर कीजिये।  धन्यवाद्।

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