मौन की अपनी परिभाषा है
बस आँखों से ये साँझा है।
शब्दों का कोई खेल नहीं,
बस हाव भाव ही भाषा है।
आनंद की अनुभूति है,
छायी रहती मदहोशी है।
दुर्ज़न साध ना पाते है,
सज्जन ही गले लगते है।
मौन में अतुल्य बल है
शब्दों सा नहीं छल है ।
ये आत्ममंथन का अमृत है,
जो सिद्धि तक ले जाता है।
औषधि सा है रस इसमें,
जैसे प्राण वायु को पाता है।
महापुरुषों ने अपनाया है,
सार इसका बतलाया है ।
ये ब्रह्मज्ञान के ज्ञानी है।
ना ये अभिमानी सा है
मौन जो समझ जाता है,
वो उन्नति पथ को पाता है ।
–डॉ रूचि ढाका
पीएचडी
मनोविज्ञान