विराम है या पूर्णविराम सी ज़िंदगी।
कभी चलती कभी ठहरी सी ज़िंदगी,
कभी इत्तर सी महकी हुई
कभी दुर्गन्ध लिए ये ज़िन्दगी।
विराम है या पूर्णविराम सी ज़िंदगी।।
कभी हँसी के ठहाको से भरी हुई,
कभी उदासी का घूँघट ओढे हुई ।
विराम है या पूर्णविराम सी ज़िंदगी ।।
कभी प्रेम की गगरी से भरी हुई,
कभी द्वेष भाव लिए ये ज़िन्दगी।
कभी सफ़ेद चादर से ढकी हुई,
कभी दाग़दार सी ये ज़िन्दगी।
विराम है या पूर्णविराम सी ज़िन्दगी ।
कभी जवानी का जोश लिए हुएँ,
कभी झुके से कंधो की थकी सी ज़िन्दगी ।।
कभी चाँदनी की तरह जगमगाती हुई,
कभी अमावास्या सी ये ज़िन्दगी।
विराम है या पूर्णविराम सी ज़िन्दगी ।।
-डॉ रूचि ढाका
पीएचडी
मनोविज्ञान